बेबाक़ी

Tuesday, March 22, 2011

शुरुआत

बहुत दिन हुए लिखना छोड़े. लेकिन बहुत कुछ है जो भीतर कुलबुलाता रहता है. जैसे छटपटा रहा हो बहार आने के लिए. शायद यही वो "कुछ" है जिसने मुझे बाध्य किया इस ब्लॉग को बनाने के लिए.
अब देखना ये है कि जीवन की आपाधापी कितना समय देगी कि मैं अपनी बात पूरी ईमानदारी और बेबाक़ी से आपके समक्ष रख पाऊ...